Sarva Pitru Amavasya : वैदिक पंचांग के अनुसार, इस बार 1 अक्टूबर 2024 कृष्ण पक्ष की अमावस्या को होगी
Sarva Pitru Amavasya : भादो मास की पूर्णिमा से श्राद्ध, यानी पितृपक्ष, शुरू होता है और सर्वपितृ अमावस्या पर समाप्त होता है। इस दौरान पूजा-पाठ करने से पूर्वज प्रसन्न होते हैं और अपनी कृपा कुल पर बनाए रखते हैं। आइए जानें इस वर्ष सर्वपितृ अमावस्या की पूजा किस दिन और तर्पण करने का शुभ मुहूर्त क्या है।
Sarva Pitru Amavasya : हर साल श्राद्ध पक्ष में पूर्वजों को श्रद्धांजलि देने के लिए पूजा-अर्चना की जाती है। पंचांग के अनुसार, 2024 में भादो मास की पूर्णिमा तिथि के दिन 17 सितंबर से श्राद्ध पक्ष शुरू होगा, जो आश्विन मास की अमावस्या, यानी सर्वपितृ अमावस्या, पर समाप्त होगा। मृत पूर्वजों और पितरों की आत्मा की शांति के लिए सर्वपितृ अमावस्या के दिन तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान आदि कार्य किए जाते हैं। इस महा अनुष्ठान के बिना पितरों की आत्मा को शांति नहीं मिलती है, यह माना जाता है। इसलिए लोग हर साल पितृ पक्ष पर श्राद्ध पूजा करते हैं। चलिए जानते हैं सर्वपितृ अमावस्या की सही तिथि, शुभ मुहूर्त और विधि। सर्वपितृ अमावस्या कब मनाई जाती है?
वैदिक पंचांग के अनुसार, इस बार 1 अक्टूबर 2024 को देर रात 09:34 मिनट से कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि शुरू होगी, जो 3 अक्टूबर को सुबह 12:18 मिनट पर समाप्त होगी। ऐसे में 2 अक्टूबर को उदयातिथि पर सर्वपितृ अमावस्या की पूजा की जाएगी। यह दिन कुतुप मुहूर्त सुबह 11 बजे 45 मिनट से दोपहर 12 बजे 24 मिनट तक है। रौहिण मुहूर्त फिर दोपहर 12 बजे 34 मिनट से 1 बजे 34 मिनट तक चलता है।
अपराह्न काल में भी तर्पण करना शुभ माना जाता है, साथ ही कुतुप और रौहिण मुहूर्त में भी शुभ माना जाता है,। वास्तव में, तर्पण की पूजा केवल दोपहर में की जाती है। ज्योतिषियों का कहना है कि अपराह्न के समय पितर और पूर्वज तर्पण को स्वीकार करते हैं। 2 अक्टूबर को सर्वपितृ अमावस्या है, जो अपराह्न 1 बजे 21 मिनट से 3 बजे 43 मिनट तक रहेगी।
अमावस्या पर किसे श्रद्धांजलि दी जाती है?
धार्मिक मत है कि सर्वपितृ अमावस्या के दिन सभी पिता को श्राद्ध करना शुभ है। जिन लोगों की मृत्यु तिथि आपको पता नहीं है, उनका श्राद्ध सर्वपितृ अमावस्या के दिन भी किया जा सकता है।
तर्पण करने की प्रक्रिया: तर्पण करने वाली जगह को गंगाजल से साफ करें।
दीप जलाएं।
जिन लोगों को तर्पण करना है, उनकी फोटो चौकी पर रखें।
मंत्र जाप करके पितरों को पुकारें।
जल से एक लोटा भरें। पितरों का नाम लेते हुए चित्र पर जल चढ़ाएं।
घी, दूध और दही को मिलाकर जल में अर्पित करें।
इस दौरान तर्पयामी मंत्र बोलें।
पिंड बनाकर जल से कुश पर रखें।
पिता-पितर को खाना खिलाओ।
पितर को सम्मान दें।
पशु-पक्षियों को खाना दें।
अंत में अपनी क्षमता अनुसार ब्राह्मण को दान-दक्षिणा देना अनिवार्य है।
विवरण: यहां दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है और सिर्फ जानकारी के लिए है। इसका प्रमाण नहीं है।