Kalashtami Vrat KHATHA : वैदिक पंचांग के अनुसार, इस बार आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 24 सितंबर 2024 को
Kalashtami Vrat KHATHA : भगवान शिव के कई रूपों में से एक काल भैरव है। भय और बुरी ऊर्जा से छुटकारा पाने के लिए काल भैरव की पूजा का एक अलग तरीका है। कालाष्टमी के दिन काल भैरव की पूजा की जाती है। अब कालाष्टमी व्रत की सही कथा जानते हैं, जिसे पढ़ने से साधक को शुभ लाभ मिल सकता है।
Kalashtami Vrat KHATHA : काल भैरव को भगवान शिव का पांचवां अवतार मानते हैं, और कालाष्टमी पर उनकी पूजा करना शुभ है। आज का दिन काल भैरव को समर्पित है। काल भैरव की पूजा करने से जीवन में आने वाली सभी समस्याएं दूर हो जाएंगी। इसके अलावा, साधक को घृणा, भय और अपने आसपास की बुराइयों से छुटकारा मिलता है। कालाष्टमी का व्रत हर साल आश्विन महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर किया जाता है।
किंतु कालाष्टमी की कहानी के बिना ये व्रत पूरे नहीं होते। कालाष्टमी व्रत की कथा को सच्चे मन से सुनने या पढ़ने से व्रत को पूरा नहीं माना जाता। यही कारण है कि आज हम आपको शास्त्रों में बताई गई कालाष्टमी व्रत की सच्ची कहानी बताने जा रहे हैं, जिसे पढ़ने या सुनने से आपको भय, क्रोध और जीवन की हर समस्या से छुटकारा मिल सकता है।
सितंबर में कालाष्टमी कब है?
वैदिक पंचांग के अनुसार, इस बार आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 24 सितंबर 2024 को दोपहर 12:38 मिनट से शुरू होगी और अगले दिन 25 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 10 मिनट पर समाप्त होगी। इसलिए 25 सितंबर 2024 को कालाष्टमी का व्रत रखा जाएगा। इस दिन काल भैरव की पूजा केवल प्रातःकाल में 04:04 से 05:32 तक ब्रह्म मुहूर्त में की जा सकती है। इसके बाद पूजा करने का कोई शुभ समय नहीं है।
कालाष्टमी व्रत की कथा: पौराणिक कथा कहती है कि एक दिन तीन देवताों में से भगवान ब्रह्मा, श्री हरि विष्णु और शिव जी में से सबसे बड़ा कौन है? देवताओं के बीच लड़ाई देखकर अन्य देवताओं ने एक सभा बुलाई। जब भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश से पूछा गया, तो सभी देवताओं से पूछा गया कि उन्हें इन तीनों में से कौन सर्वश्रेष्ठ था? सभी देवताओं ने अपनी राय दी और एक उत्तर दिया. भगवान शिव और विष्णु ने इसका समर्थन किया, लेकिन भगवान ब्रह्मा ने इसे मानने से इनकार कर दिया। इसके बाद ब्रह्मा ने भोलेनाथ को अपशब्द कहते हुए क्रोधित हो गया।
कहा जाता है कि काल भैरव महादेव के क्रोध से उत्पन्न हुआ था। काल भैरव ने क्रोध में ब्रह्मा के पांच मुखों में से एक को काट दिया, जिसके बाद ब्रह्महत्या का पाप उनके ऊपर चढ़ गया। काल भैरव ने अपने क्रोध को शांत करने के बाद ब्रह्मा से माफी मांगी, जिसके बाद महादेव अपने मूल स्वरूप में वापस आ गए। इसके बाद काल भैरव की पूजा शुरू हुई।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, काल भैरव को समर्पित कालाष्टमी व्रत रखने से साधक को भय और क्रोध से छुटकारा मिलता है। साथ ही जीवन में आने वाली मुश्किलों का अंत होने लगता है।