Kaal Bhairav jayanti 2024: काल भैरव भगवान शिव का रौद्र अवतार माने गए हैं। तंत्र विद्या में काल भैरव की पूजा अचूक है, लेकिन घर पर इसकी पूजा करने के कुछ नियम हैं।
Kaal Bhairav jayanti 2024: हिंदू कैलेंडर के अनुसार, हर महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को कालाष्टमी कहते हैं, क्योंकि इसी तिथि पर काल भैरव का उदय हुआ था। इस दिन काल भैरव की पूजा अचूक है। काल भैरव की पूजा खासकर मार्गशीर्ष महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर करनी चाहिए क्योंकि इस दिन काल भैरव जयंती मनाई जाती है।
काल भैरव को भगवान शिव का क्रूर अवतार माना जाता है। भैरव का अर्थ है भय को हरने या जीतने वाला।इसलिए काल भैरव की पूजा करने से मृत्यु और सभी संकटों का भय दूर होता है। आइए जानते हैं काल भैरव की पूजा के नियम और कब करनी चाहिए।
काल भैरव जयंती 22 नवंबर 2024 को मनाई जाएगी
काल भैरव की पूजा कब करनी चाहिए?
शिव पुराण कहता है कि जब दिन और रात मिलते हैं प्रदोष काल में यानी शाम को शिव के रौद्र रूप से भैरव प्रकट हुए। वह इस समय काल भैरव की पूजा करते हैं। तांत्रिक पूजा रात्रि में की जाती है, इसलिए सिद्धि पाने वालों (अघोरी या तंत्र-मंत्र करने वालों) को काल भैरव की पूजा निशिता काल मुहूर्त में करनी चाहिए। इसके लिए शनिवार और रविवार का दिन सबसे उत्तम माना गया है।
बाबा भैरव के कितने रूप ?
स्कंद पुराण के अवंति खंड में बताया गया है कि भगवान भैरव के आठ रूप हैं। इनमें से तीसरा काल भैरव है। भैरव के अलावा सात और लोगों ने अपने रूप और कार्य के अनुसार नाम दिए हैं। उनके नाम, रुरु भैरव, संहार भैरव, काल भैरव, असित भैरव, क्रोध भैरव, भीषण भैरव, महा भैरव और खटवांग भैरव.
भैरव से जुड़ी दो सिद्धियां होती हैं
काल भैरव की दो प्रकार की पूजा की जाती है। राजसिक और तामसिक सिद्धान्त दोनों को अलग-अलग विधि अपनानी होती है। तामस में मंत्रों, हवन आदि करते हैं, इसलिए भूत, प्रेत और पिशाच भी शरीर से जुड़ जाते हैं। इसलिए आपको अलग से इष्ट मंत्र की साधना करनी होगी, नहीं तो ऐसी शक्तियां शरीर को अपने स्थान पर खींच लेंगी। इसलिए गृहस्थ लोगों को काल भैरव की आम तौर पर पूजा करनी चाहिए।
कैसे करें काल भैरव को प्रसन्न
- नियमित पूजा में काल भैरव के मंत्रों का जाप और भैरवाष्टक का पाठ करना शुभ है।
- शनिवार के दिन उड़द के पकौड़े कड़वे तेल में बनाकर कुत्ते को खिलाएं. इससे बाबा भैरव प्रसन्न होते हैं।
- काल भैरव को जलेबी, इमरती और मालपुए का भोग लगाएं. रविवार या शनिवार को गुग्गल की धूप जलाएं और पूरे घर में इसका धुआं घुमाएं.