Vice president Jagdeep Dhankhar: यह वही धरा है जहाँ संदीपनी आश्रम में भगवान श्री कृष्ण ने अपनी शिक्षा दीक्षा ग्रहण की थी। कवि कालिदास को आकर यहाँ ज्ञान की प्राप्ति हुई और भर्तृहरि को ज्ञान का प्रकाश मिला।
चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य के शासन काल में उज्जैन में दुनिया में न्याय, वैभवशाली संस्कृति, परंपरा और व्यापारी गतिविधियों के लिए प्रसिद्धि का स्थान प्राप्त किया। सम्राट विक्रमादित्य की इस नगरी में एक अद्वितीय न्याय का केंद्र बना जो विश्व विख्यात हुआ । उसी काल में कवि रत्न थे कालिदास जी। वे कवि कुलगुरु थे। यानि समग्र कवि समुदाय के वो गुरु थे, कुलगुरु। उनकी अमर कृतियां अभिज्ञान शकुंतलम, मेघदूतम, कुमारसम्भवम, ऋतुसंहारम और मालविका अग्निमित्रम में मानवीय भावनाओं का अदभुत संगम है। ऐसा संगम है जो हमारे लिए सदैव प्रेरणा का स्रोत रहेगा।
सम्मानित महापुरुषों आज की ज्वलंत समस्या पर्यावरण की है।इसकी ओर हमारा ध्यान महाकवि कालिदास की रचनाओं से मिलता है। उनसे हमें बोध होता है पर्यावरण संरक्षण और सृजन हमारे अस्तित्व के लिए अहम है। जागरूकता से जलवायु परिवर्तन की गंभीर समस्या पर सभी को ध्यान देना चाहिए और हमे याद रखना चाहिए कि हमारे पास पृथ्वी के अलावा दूसरा कोई रहने का स्थान नहीं है।
आज का यह 66वाँ अखिल भारतीय कालिदास समारोह हमारी संस्कृति का प्रतीक है। हमें याद दिलाता है कि दुनिया में हम कितने अद्भुत है। भारत जैसा कोई दूसरा देश नहीं है जिसके पास ऐसी सांस्कृतिक विरासत हो। यह निश्चित है, यह ध्यान में रखने वाली बात है जो देश जो समाज अपनी संस्कृति, अपनी सांस्कृतिक धरोहर को नहीं सम्भाल के रखता है वो समाज ज़्यादा दिन नहीं टिक सकता है। हमें हमारी संस्कृति पर पूरा ध्यान देना होगा, हमारी सांस्कृतिक जड़ें हमें याद दिलाती हैं कि जीवन का सार क्या है, जीवन का मूल्य क्या है, जीवन का दर्शन क्या है? और हमारे अस्तित्व का महत्व क्या है।
भाइयों और बहनों, कोई भी समाज, कोई भी देश, इस आधार पर नहीं चल सकता कि हम अधिकारों पर जोर दे। हमारे संविधान ने हमें अधिकार दिए हैं। पर हमें संतुलित करना होगा उन अधिकारों को हमारे दायित्व से। नागरिक के दायित्व होते हैं, नागरिक की जिम्मेदारी होती है। और इसलिए आज के दिन मैं आपको आह्वान करूंगा। मन को टटोलिए। हम महान भारत के नागरिक हैं। भारतीयता हमारी पहचान है। हमारा राष्ट्रवाद में विश्वास है, राष्ट्र हमारा सबसे बड़ा धर्म है, राष्ट्र को सर्वोपरि रखते हैं और उसमें हर नागरिक को आहुति देनी है। और उसका सबसे श्रेष्ठ माध्यम है कि नागरिक अपने कर्तव्यों का निर्वहन करे।
[महाकवि कालिदास की] कृतियों में भाइयों और बहनों, एक और बड़ी सीख छुपी है जिसकी ओर हमे ध्यान देना चाहिए – कुटुंब प्रबोधम! यह भारत के चरित्र में है, कुटुकम्ब का ध्यान नहीं देंगे तो जीवन सार्थक कैसे रहेगा ? हमें पता होना चाहिए हमारे पड़ोस में कौन है? हमारे समाज में कौन है? उनके क्या सुख दुख हैं? कैसे हम उनको राहत दे सकते हैं? यह जीवन को सार्थक बनाते हैं। आज हम ऐसे समय में रह रहे हैं जब भारत उन्नति की ओर है। आर्थिक प्रगति अकल्पनीय है। दुनिया हमें सरहा रही है। हमारी अर्थव्यवस्था नए मापदंड हासिल कर रही है। दुनिया में लोहा जो आज भारत का है, कभी पहले नहीं रहा। भारत के नेतृत्व का, प्रधानमंत्री का जो दर्जा विश्व में है उसकी कल्पना पहले कभी नहीं की गई थी।
ऐसी स्थिति में जब हम पाते हैं कि हर कोई भौतिकवाद की तरफ़ जा रहा है। इतने व्यस्त हो जाते हैं की हम अपनों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं, अपनों का ध्यान नहीं देते हैं? राष्ट्र का ध्यान तभी रहेगा जब कुटुंब का ध्यान रहेगा। राष्ट्र का ध्यान तभी रहेगा जब अपनों का ध्यान रहेगा। यह हमारी संस्कृति का मूल सिद्धांत है। मैंने दो बातें बताई हैं अब तक एक नागरिक का कर्तव्य एक कुटुंब प्रबंधन। इस पर आप ध्यान दीजिये, मन को टटोलिए। ऐसा ना करके हम कितना स्वर्णिम अवसर खो रहे हैं, हमें सजग रहना चाहिए।
बच्चे हमारी आने वाली पीढ़ी है। हमें उनके चरित्र का ध्यान देना चाहिए। नैतिकता का विश्वास उनमें बढ़ाना चाहिए। यह हमारी मुख्य जिम्मेदारी है। बहुत अच्छा है हम कल्पना करें आकांक्षा रखे बच्चा डॉक्टर बने, इंजीनियर बने, अफसर बने, उद्योगपति बने, पर सबसे ज्यादा जरूरी है कि बच्चा अच्छा नागरिक बनें, वो नागरिक के महत्व को समझे, नागरिक के कर्तव्य को समझे। और इसी से एक चीज़ उत्पन्न होगी जिसकी भारत में सख्त आवश्यकता है आज के दिन जिसको जगह जगह से चुनौतियाँ दी जा रही हैं- सामाजिक समरसता।
भारत हमेशा सामाजिक समरसता, विश्व शांति और सबके कल्याण को दृष्टि में रखता है। हम उस देश के वासी हैं जिसने वसुधैव कुटुम्बकम को अपनाया और दुनिया के सामने सार्थक प्रयोग रखा है। हमने दुनिया को योग दिया, यह विद्या हमने दी क्योंकि हम सबकी सोचते हैं।
मेघदूत प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत नज़ारा दिखाता है। पर मेघदूत हमें यह भी सिखाता है इस प्रकृति के साथ खिलवाड़ मत करो। इस प्रकृति को सृजन करना हमारा काम है। यदि अगर हम प्रकृति की ओर ध्यान नहीं देंगे तो पहले कह चुका हूँ, हमारे पास रहने के लिए दूसरी पृथ्वी नहीं है। और प्रकृति का ध्यान देने की शुरुआत प्रधानमंत्री जी ने अपने नारे से की थी जो मैं आह्वान करूंगा कि हर व्यक्ति को करना चाहिए, मां के नाम एक पेड़ । संपूर्ण भारत के वासी यदि अगर मां के नाम एक पेड़ लगाते हैं, उसका सृजन करते हैं, संरक्षण करते हैं तो वैसी क्रांति आएगी जैसी क्रांति हमने सफाई के मामले में हासिल की है।
दुनिया की सबसे बड़ी संस्थाएं इस बात से अचंभित हैं कि भारत में तकनीकी की वजह से आम आदमी का जीवन कितना सुलभ हो रहा है।
आजके दिन 10 करोड़ से ज़्यादा किसान, मैं उस परिवार से आता हूँ। साल में तीन बार पैसा सीधा बिना बिचौलिये के बिना interface के प्राप्त करते हैं।
When it comes to digital transactions, Bharat commands more than 50% of such transactions और per capita internet consumption देश का, अमरीका और चाइना को मिलाकर भी ज़्यादा है। आजके दिन भारत एक ऐसा वातावरण प्रस्तुत करता है जहाँ हर व्यक्ति को मौक़ा है, अवसर है कि वो अपनी प्रतिभा को चमका सके क्योंकि सबको समान अधिकार है कोई एक दूसरे से बड़ा नहीं है क़ानून का शिकंजा सबके ऊपर पहुंचता है। जो कहते थे पहले कि हम क़ानून से ऊपर हैं वो क़ानून के शिकंजे में हैं। आज के दिन इस पावन भूमि पर इस पावन पर्व के उपर मैं आपसे आह्वान करता हूँ हमेशा राष्ट्र को सर्वोपरि रखें। हमारा राष्ट्र महान बनेगा, विकसित राष्ट्र बनेगा 2047 में। उसके लिए एक बहुत बड़ा हवन देश में हो रहा है। उस हवन में हर किसी को आहुति देनी है। उस आहुति में कभी कमी नहीं करें।
२०४७ में पूर्ण आहुति होगी और निश्चित रूप से भारत दुनिया का सिरमौर होगा, मैं यही कहूँगा अंत में – शरीर नश्वर है परंतु कीर्ति सदैव अमर रहती है।
source: https://pib.gov.in